Thursday, October 21, 2010

Are we educated enough

Today I saw something which made me very happy but also made me to think a lot.
Today morning, I woke up early around 8 am :P . When I was brushing teeth in balcony, I saw my mess worker, who is a little boy (some 9-10 years old), coming towards my flat. On his way, He switched off all the lights in the corridor. I looked around but there was no one to instruct him to do so.
He is neither paying any electricity bill nor getting any money for doing that. He never went to school in his life to know about Global Warming or limited natural resources. How he knows this. Even he is not mature enough to know all this and if he is that much mature at age 10, when we will be mature. When will we know that if we are lazy enough not to save the electricity and water then at least we should not waste it. I see people around me wasting electricity like anything. They scarcely shutdown their laptops/ desktops, they hardly switch off lights when they leave their room; forget about switching off lights while leaving office, they don’t off the TV, sometimes even they don’t care to switch off Bathroom’s light when they are done with that. I should not exclude myself from the list of the so called well educated people who completed their graduation from one of the best colleges in India, who know about Global Warming, who all know that we have limited natural resources, still waste them.
Perhaps we need to get some education from that little illiterate lad, which we could not get in our 16+ years of school life.
-- जनहित में जारी

Friday, October 8, 2010

Poems

First one to my mom:

मै रोया यहां दूर देस वहां भीग गया तेरा आंचल
तू रात को सोती उठ बैठी हुई तेरे दिल में हलचल
जो इतनी दूर चला आया ये कैसा प्यार तेरा है मां
सब ग़म ऐसे दूर हुए तेरा सर पर हाथ फिरा है मां
जीवन का कैसा खेल है ये मां तुझसे दूर हुआ हूं मै
वक़्त के हाथों की कठपुतली कैसा मजबूर हुआ हूं मै
जब भी मै तन्हा होता हूँ, मां तुझको गले लगाना है
भीड़ बहुत है दुनिया में तेरी बाहों में आना है
जब भी मै ठोकर खाता था मां तूने मुझे उठाया है
थक कर हार नहीं मानूं ये तूने ही समझाया है
मै आज जहां भी पहुंचा हूँ मां तेरे प्यार की शक्ति है
पर पहुंचा मै कितना दूर तू मेरी राहें तकती है
छोती छोटी बातों पर मां मुझको ध्यान तू करती है
चौखट की हर आहट पर मुझको पहचान तू करती है
कैसे बंधन में जकड़ा हूँ दो-चार दिनों आ पाता हूँ
बस देखती रहती है मुझको आँखों में नहीं समाता हूँ
तू चाहती है मुझको रोके मुझे सदा पास रखे अपने
पर भेजती है तू ये कह के जा पूरे कर अपने सपने
अपने सपने भूल के मां तू मेरे सपने जीती है
होठों से मुस्काती है दूरी के आंसू पीती है
बस एक बार तू कह दे मां मै पास तेरे रुक जाऊंगा
गोद में तेरी सर होगा मै वापस कभी ना जाऊंगा



This is all my dear friends:

तू कभी बिछड़ा नहीं और तू मिला भी नहीं
पर मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं ग़िला भी नहीं

तू भले मुझसे ख़फ़ा है और तू दूर भी है
मगर तुझसे ऐ दोस्त दिल को फ़ासिला भी नहीं

मै कैसे दिखलाऊं तुझको दिल की सच्चाई
एक अरसे से तू मुझसे गले मिला भी नहीं

वो एक वक़्त था जब दिल से दिल मिले थे यहाँ
ये एक वक़्त है बातों का सिलसिला भी नहीं

तू मुझे कुछ समझ, मुझको तो तुझसे प्यार है दोस्त
तुझ सा कोई ढ़ूंढ़ा नहीं मिला भी नहीं

मुझे पता है मुझ में लाख कमी है शायद
ये बेरुख़ी मगर दोस्ती का सिला भी नहीं

कभी कभी मुझे लगता है भूल जाऊं तुझे
मगर ये सच है भूलने का हौंसिला भी नहीं

तू खुश रहे ये दुआ तेरी कसम रोज़ करता हूँ
और अपने ग़म का मुझे अब कोई ग़िला भी नहीं

बस इक उम्मीद है तुझ को गले लगाऊं कभी
के वो एहसास मुझे फ़िर कहीं मिला भी नहीं

Found these two poem very interesting.. hope you will also like them (courtesy: Rohit Jain...he wrote them nd tarun..Who shared them)